प्रजापति शब्द की उत्पति एवं अर्थ
कुम्भ का निर्माण करने के कारण इसके निर्माता काे कुम्भकार कहा गया। प्राचीन इतिहास में कुलाल शब्द का प्रयोग किया गया है।
अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग भाषा होने
के कारण इसका उच्चारण समय के साथ अलग होता गया। जैसे मराठी क्षेत्र में
कुम्भारे पश्चिमी क्षेत्र में कुम्भार राजस्थान में कुमार तो पश्चिमी
राजस्थान में कुम्भार कुम्बार पंजाब हरियाणा के सटे क्षेत्र में गुमार।
अमृतसर के कुम्हारों को “कुलाल” या “कलाल” कहा जाता है , यह शब्द यजुर्वेद
मे कुम्हार वर्ग के लिए प्रयुक्त हुये है।
कुम्हारों के पारंपरिक मिट्टी से बर्तन
बनाने की रचनात्मक कला को सम्मान देने हेतु उन्हे प्रजापति कहा गया। जिस
प्रकार ब्रह्मा पंच तत्वों इस नश्वर सृष्टि की रचना करते है उसी प्रकार
से कुम्भार भी मिट्टी के कणों से कई आकर्षक मूर्तियां खिलौने बर्तन आदि का
सृजन करता है इसीलिए इस जाति प्रजापति की उपमा दी गयी।
ये भी माना जाता है कि मनुष्यों मे शिल्प और अभियांत्रिकी की शुरूआत इसी जाति से हुई है।
विभिन्न तरह की मिट्टी के गारे के
निर्माण के प्रयोग करते समय ही चूने और खड़ी के प्रयोग का पता चला। इसी
चूने खड़ी से चुनाई और भवन निर्माण का कार्य करने वाले चेजारे कहलाते है।
ये भी इसी जाति से अधिकतर है।
मध्य प्रदेश
यहा हथरेटी ओर चकारेटी कुम्हार पाये जाते है। बर्तन बनाने के लिए चाक को हाथ से घुमाने के कारण इन्हे हथरेटी कहा जाता है। कुम्हारों को गोला भी कहा जाता है। कुम्हार जाति प्रदेश के छतरपुर, दतिया, टीकमगढ़, पन्ना, सतना, सीधी व शहडोल जिलों में अनुसूचित जाति में शामिल है व शेष इलाकों में अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में
कुम्हार शब्द का जन्म संस्कृत भाषा के "कुंभकTर" शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है-"मिट्टी के बर्तन बनाने वाला"। द्रविढ़ भाषाओ में भी कुंभकार शब्द का यही अर्थ है। "भांडे" शब्द का प्रयोग भी कुम्हार जाति के सम्बोधन हेतु किया जाता है, जो की कुम्हार शब्द का समानार्थी है। भांडे का शाब्दिक अर्थ है-बर्तन। अमृतसर के कुम्हारों को "कुलाल" या "कलाल" कहा जाता है , यह शब्द यजुर्वेद में कुम्हार वर्ग के लिए प्रयुक्त हुये हैं।