भाव विस्तार हिंदी ग्रामर

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//भाव विस्तार //

प्रश्नः-1 दूर के ढोल सुहावने होते है। भाव विस्तार कीजिये ।

उत्तर-दूर के ढोल सुहावने होते है इस कहावत का तात्पर्य है कि कोई भी पदार्थ दूर होने के फलस्वरूप मोहक तथा सुहावना लगता है क्योकि दूर का पदार्थ वास्तविकता से अलग हो जाता है इसी लिए उसमे कर्कस्यता का आभास नही हो पाता है वृद्धो को अतित एवं युवको को भविष्य आक्रसित लगता है लेकिन जब बे कर्म के क्षेत्र में प्रवेष करते है तो सत्य का ज्ञान होता है अतित एवं अज्ञानता दूर के ढोल की तरह सुहावने लगते है समझा जाता है कि दुनिया दूर से जितनी लुभावनी लगती है ऐसी आक्रमत नही होती इसी लिए यह कथन सत्य है कि दूर के ढोल सुहावने लगते है।

प्रश्नः-2 धर्म प्रार्थक्त नही एकता का घोतक है भाव विस्तार कीजिए।

उत्तर-इस संसार में विभिन्न धर्माे का प्रचलन है जिस मनुष्य की जिस धर्म मे आस्थ होती है वह उसी धर्म का पालन कर्ता है धर्म अलग अलग होते हुये भी मूल्य रूप से समान है धर्म भाईचारा ,प्रेम, एकता एवं अंहिसा का संदेष वाहक है धर्म के आधार पर कलह या संघर्ष करना अषोभनीय है धर्म तोडता नही अपितु जोडता है इंसान के दिल और दिमांग मे उधार भावना ,भावना का बीज रोपण करता है धर्म के साधन अलग अलग हो सकते है अतः यह कथन पूरी तरह सत्य है कि धर्म पार्थक्य नही अपितु एकता का द्योतक है।

प्रश्नः-3 साहित्य एवं समाज का घनिष्ट संबंध है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर- साहित्य एवं समाज का घनिष्ट संबंध समाज के धरातल पर ही साहित्यकार साहित्य की रचना करता है वह अपने साहित्य के माध्यम से समाज को नवीन बोध एवं दिषा प्रधान करता है लेकिन समाज के अस्तित्व को नकारने पर साहिंत्य का सर्जन नही हो सकता साहित्य तत्कालीन समाज की राजनैतिक धार्मिक विज्ञान कला एवं संभंता संस्कुति का जीवनत अंकन करता है साहित्य के पटन पाटन से तत्कालीन युग की सम्यक जानकारी प्राप्त हो सकती है इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।

प्रश्नः-4 इ्र्रष्वर किसी धर्म या जाति का नही होता है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर-यह बात सत्य है कि ईष्वर निर्गुण निराकार अखण्ड एवं सर्व षक्तिमान है उसे किसी परधि मे समेट कर नही बाधा जा सकता परमपिता होने के फल्रस्वरूप वह सबका है एवं सब उसके समस्त धर्म अनुयायिओ का इस उस पर समान रूप से अधिकार है धर्म का मार्ग अलग अलग होते हुये भी सबका लक्ष्य भी ईष्वर की प्राप्ति होता है वह असीम कृपा सब पर समान रूप से बरसाता है अतःइ्र्रष्वर किसी धर्म या जाति का नही होता है।

प्रश्नः-5 कविता कोमल की चीज है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर-मावन मन मे विद्यमान कोमल भावनाओ के प्रकाषन का साधन कविता है भावुक व्यक्ति के भाव उमंगित होते है तब कविता का जन्म होता है अन्य मानवो की तुलना मे कवि कुछ अधिक संवेदना ष्षील तथा भावुक होता है जिन्दगी के कटु एवं मधुर भाव कविता के सहारे व्यक्त होते है कवि के कोमल मानस से कविता की मधुर धारा प्रभावित होने लगती है संवेदन षीलता कोमल ह्रदय मे ही निवास करती है जिस व्यक्ति के मन मे संवेदन षीलता नही है वह न कविता को न समझ सकता है और न ही लिख सकता है अतः यह कहा जाता है। कि कविता कोमल ह्रदय की चीज है।

प्रश्नः-6 बेर क्रोध का आधार या मुख्य है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर- क्रोध यदि आम है तो बेर उसका आधार है जिस प्रकार आम की अपेक्षा उसका आधार अधिक टिकाउ होता है उसी प्रकार बेर क्रोध का स्थाई या टिकाउ रूप है जो क्रोध तत्काल प्रदर्षित होने से रह जाता है तो समय आने पर वह बेर के रूप प्रकट होता है जिस प्रकार विषेष ढंग से तैयार किया गया मुरव्वा अधिक समय तक टिकाउ होता है बैसे ही मनुष्य के ह्रदय मे क्रोध अधिक समय तक रहने पर बेर का रूप धारण कर लेता है अतः यह कथन सत्य है कि बेर क्रोध का आचार का मुरव्वा है।

प्रश्नः-7 भगवान के घर में देर अंधेर नही है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर- यह बात सत्य है कि ईष्वर सच्चा एवं निष्पक्ष न्याय करने वाला है वह दोषी को सजा देते है तथा निर्दोष की सुरक्षा करते है यह बात देखने मे भी आती है कि कभी कभी निर्दोष व्यक्ति को भी विपत्ति कि जाल में उलझ जाते है जिस मनुष्य की ईष्वर पर आस्था और निष्ठा होती है। वे जानते है कि ईष्वर उसे एक न एक दिन आवष्यक नियाय प्रधान करेगा और विपत्ति के फन्दे से मुक्त का देगा इस प्रकार यह कथन सत्य है कि भगवान के घर में देर अंधेर नही है।

प्रश्नः-8 जवारो जैसे पीताभ गेहू के पौधे का संदेष देते है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर- गेहूॅ का पौधा बडकर मनुष्य को यह षिक्षा देता है कि निमार्ण सदैव विकास की ओर जाता है सृजन को अंधेरे बन्द कमरे मंे नही किया जा सकता है जैसे छोटे दीपक की लोग दूर दूर तक प्रकाष फेलती है उसी प्रकार सृजन का प्रकाष फेलता है व्यक्ति का आचरण षील ,विवेक ,मेहनत , ईमानदारी , आस्था आदि गुण सृजन की मात्रा को आगे की ओर ले जाते है  हाल ही में अकुरित गेहू के पौधे मनुष्य यही प्रेरण देते है।

प्रश्नः-9 अज्ञान सर्वत्र आदमी  को पछाडता है। भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर-अज्ञान आदमी को सर्वत्र पछाडता है मानव जीवन के लिए अज्ञानता एक अभिसाय है ज्ञान के कारण ही मनुष्य आज षक्ति के उच्च षिखर पर पहुच सका है ज्ञान के कारण ही मनुष्य सत्य असत्य अच्छाईया बुराईया को पहचानता है अज्ञानता मनुष्य को सभ्यता बनाती है उसे विकास से विपरीत दिषा मे ले जाती है इसलिए कहा गया है अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाडता है।

प्रश्नः-10 मन के हारे हार है मन के जीते जीत है भाव विस्तार कीजिए ।

उत्तर-जीवन मे सफलता और असफलता मन के कारण मिलती है मन की घृणा संकल्प षक्ति निरन्तर कार्य में जुटाया रखती है इसमे सफलता मिल जाती है मन की दुर्बलता मावन मे निराष का संचार कर देती है असफलता ही हाथ लगती है जीवन के कर्म क्षेत्र में विजजी होने के लिए मन को सवल और संकल्पषील बनाने की आवष्यकता है।

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